होली का त्योहार देश के कई राज्यों में मनाया जाता है। लेकिन मथुरा वृंदावन की होली दूसरों से अलग है और यहां के होली के त्योहार का एक पुराना इतिहास है। ब्रज की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। वृंदावन और मथुरा की होली देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं। इसके अलावा विदेशों से भी हजारों की संख्या मे लोग आते हैं।
यहां सैकड़ों वर्षों से कई प्राचीन मान्यताओं की तर्ज पर होली मनाई जा रही है। बता दें कि मथुरा वृंदावन भगवान कृष्ण की जन्मभूमि रहने की वज़ह से यहां की होली को और भी खास बनाती है। अगर आप मथुरा वृंदावन होली का इतिहास, धार्मिक कथाएं और होली से जुड़ी कई अहम बातें जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट में बने रहें।
मथुरा और वृंदावन होली का इतिहास
TOC
मथुरा वृंदावन में 15 से 16 दिनों तक बड़े रीति-रिवाजों के साथ पारंपरिक तरीके से होली मनाई जाती रही है। जिसमें तीन महत्वपूर्ण होली हैं जो इस प्रकार हैं:-
रंग गुलाल का इतिहास
अनेकों होली पौराणिक कथाएं इतिहास मैं एक रंग गुलाल का भी इतिहास रहा है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण रानी राधा के गोरे वर्ण और अपने कृष्ण वर्ण का कारण माता यशोदा से हमेशा पूछा करते थे. एक बार की बात है जब उन्हें बहलाने के लिए माता यशोदा ने राधा के गालों पर रंग और गुलाल लगा दिया था।
जिसके बाद से यहां के लोग प्रत्येक वर्ष एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर इस पर्व को मनाते चले आ रहे हैं। यहां के लोगों का मानना है कि रंग गुलाल हमारे बीच की दूरियों को मीटाती है। सदियों से मथुरा वृंदावन के गांव शहरों में लोग एक साथ होकर बड़े प्यार और धूमधाम के साथ इस त्यौहार का आनंद लेते हैं।
लठमार होली का इतिहास
लठमार होली विश्व भर मे प्रसिद्ध होली मानी जाती है। नंद गांव के लोग लठमार होली को सदियों से मनाने का दावा करते हैं कि लोगो के द्वारा लठमार होली के काफी पुरानी परंपरा बताई है।
लठमार होली डंडो और ढाल से खेली जाती है। जिसमें महिलाएं पुरुष डंडो और ढाल से खेलते हैं। इसमें महिलाएं पुरुषों को डंडो से मारती है दूसरी तरफ पुरुष महिलाओं की लढ की वार से बचने का प्रयास करते हैं। वहां के लोगों का कहना है कि भगवान श्री कृष्ण होली के समय बरसाने के लिए आए थे।
उसी दौरान राधा अपनी अनेकों सहेलियों के साथ लठ लेकर श्री कृष्ण के पीछे दौडी थी। तब से यहां के लोग लठमार होली खेलते चले आ रहे हैं। प्रत्येक वर्ष लठमार होली की शुरुआत शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन होती है इस दिन यहां के लोग भांग की कुट, भांग की छनाई, भांग की पिसाई और होली गीत गान डांस के साथ इस पर्व का आनंद लेते है।
फूलों की होली का इतिहास
मथुरा और वृंदावन की अनेकों परंपरागत होली में एक प्रमुख होली फूलों की होली भी है। यहां के लोग सदियों से फूलो की खेलते आ रहे हैं। फूलो की होली बांके बिहारी मंदिर में लगभग 15 से 20 मिनट तक खेली जाती है। फूलों के होली फाल्गुन एकादशी को वृंदावन में मनाई जाती है। इस दिन बांके बिहारी के मंदिर का कपाट खुलते ही यहां के पुजारी भक्तों पर फूलों की बारिश करते हैं। इस दृस्य को देखने के लिये दूर-दूर से लोग मथुरा वृंदावन आते हैं। फूलो की होली प्रचीन काल से काफी लोकप्रिय बताई जाती है।
इन्हें भी पढ़ें:–Memes बना कर कैसे लोग लाखो मे कमाई कर रहे हैं।